क्या तुम्हे याद है,
उन दिनो की बात!!
कि कैसे मैं हर दिन,
किसी न किसी बहाने,
तुम्हारे सामने वाले बेंच,
पर बैठ जाता था,
और मैं अपनी आँखो से,
थोडी सरारत, वाली नजरो से
देखा करता था,
तेरी झुल्फे जो करीने से,
तुम्हारे कोमल गर्दन को छूते थे,
फिर उनके सहारे, अपनी ज़ूल्फो
के पिछे छीपकर थोडी,
गुस्ताख नजरो से मुझे देखना,
क्या तुमहे याद है,
उन दिनो की बात!!
कैसे तेरी - मेरी आंखे,
एक हो जाती थी,
कलम और नोट बूक,
के सहारे, बाते करना,
तुम अपने, दोस्तो की भीड मे,
और मैं अपनो की,
फिर ज़माने,
से छीपकर हाथ हिलाकार,
bye2 करना,
क्या तुम्हे याद है,
उन दिनो की बात!!
उन दिनो की बात!!
कि कैसे मैं हर दिन,
किसी न किसी बहाने,
तुम्हारे सामने वाले बेंच,
पर बैठ जाता था,
और मैं अपनी आँखो से,
थोडी सरारत, वाली नजरो से
देखा करता था,
तेरी झुल्फे जो करीने से,
तुम्हारे कोमल गर्दन को छूते थे,
फिर उनके सहारे, अपनी ज़ूल्फो
के पिछे छीपकर थोडी,
गुस्ताख नजरो से मुझे देखना,
क्या तुमहे याद है,
उन दिनो की बात!!
कैसे तेरी - मेरी आंखे,
एक हो जाती थी,
कलम और नोट बूक,
के सहारे, बाते करना,
तुम अपने, दोस्तो की भीड मे,
और मैं अपनो की,
फिर ज़माने,
से छीपकर हाथ हिलाकार,
bye2 करना,
क्या तुम्हे याद है,
उन दिनो की बात!!
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