Saturday, December 21, 2019

काश मुद्दा होता।।

काश, मुद्दा लड़ने के बजाए,
पढ़ने का होता!

काश मुद्दा, बटने के बजाए,
एक साथ होने का होता!

काश मुद्दा, रोने के बजाए,
हँसने और हँसाने का होता!

काश मुद्दा, मंदिर-मस्ज़िद,
के बजाए, इंसानियत में डूबने का होता!

काश मुद्दा, हिन्दू-मुसलमान होने के बजाए,
होना ही नही होता!

काश मुद्दा, हैवानियत के बजाए,
इंसानियत का होता!

काश मुद्दा, पेड़ काटने के बजाए,
पौधें लगाने का होता!


तुम्हारी याद में

सबकुछ है, लेकिन एक ख़ुशनुमा तन्हाई भी है,
जो मुझमें कहीं, वीरानो सी, पतझड़ सी बगीचो में,
मेरे बदन को सेकती, तुम्हारी शुष्क यादें,
जिसमें, तुम्हारे साथ के दिनों कि,
नई-पुरानी बातें, जो अनकहीं और अनसुनी
रह गई, दो बदन की अधुरी किस्से,
जैसे कलम और स्याही के शब्दों का सफ़र,
मैं डूब जाता हूँ तुम्हारी यादों की कस्ती में,
तन्हाई का सफर कर रहा हूँ, तुम्हारे जाने के बाद।।


Friday, July 26, 2019

चलो देखते है, तुम्हारे हुस्न के कचहरी में हाज़िरी लगाकर, क्या चासनी गिला है या फिर अरब की सूखी ज़मीन।