सोशल मीडिया के शोर में गुम होता देशप्रेम"
आज जब पूरा भारत युद्ध के मुहाने पर खड़ा है, जब हमारे जवान सरहदों पर सीना ताने खड़े हैं, तब भी देश के भीतर एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस संकट की आहट से बेखबर है। क्यों? क्योंकि उनकी दुनिया सिर्फ इंस्टाग्राम की रील्स, फेसबुक की स्टोरीज़ और व्हाट्सएप की डीपी तक सीमित हो गई है।
सोशल मीडिया अब संवाद का माध्यम नहीं, एक दिखावे की मंडी बन चुका है। वहाँ न कोई संवेदना बची है, न ही देश के लिए कोई जिम्मेदारी। जब हमारे सैनिक रातों की नींद छोड़कर सीमा पर खड़े होते हैं, तब बहुत से लोग अपनी सुबह की तस्वीर में "Good Morning" लिखकर खुद को समाजसेवी समझ लेते हैं।
हम पूछना चाहते हैं — क्या सिर्फ अपनी तस्वीरें पोस्ट करना ही ज़िंदगी है? क्या देश की ज़मीनी हकीकत से आँखें मूंद लेना ही आधुनिकता है? अगर आपके पास एक स्मार्टफोन है, तो क्या आप उसका इस्तेमाल सिर्फ खुद को दिखाने में करेंगे, या कभी देश के लिए भी आवाज़ उठेगी आपकी उंगलियों से?
ये वक़्त है जागने का। सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल कीजिए। अपने स्टेटस में हमारे वीर जवानों के लिए कुछ शब्द लिखिए। उनकी बहादुरी, उनके त्याग और उनके संघर्ष को जगह दीजिए। हम सबका कर्तव्य है कि देश के इस कठिन समय में न केवल उनका हौसला बढ़ाएं, बल्कि खुद भी एक जागरूक नागरिक बनें।
देश चलाने के लिए सिर्फ सरकार और सैनिक नहीं होते, बल्कि हर वह नागरिक ज़िम्मेदार होता है जो देश की मिट्टी से जुड़ा हो। तो अपने इंस्टाग्राम से थोड़ा समय निकालिए, व्हाट्सएप पर सिर्फ फॉरवर्ड न कीजिए—कुछ असली, सच्चे भाव लिखिए। ताकि जब इतिहास लिखा जाए, तो उसमें यह भी लिखा जाए कि जब भारत संकट में था, तब उसकी जनता उसके साथ खड़ी थी—शब्दों में, भावों में और कर्मों में।
"सोशल मीडिया पर नहीं, दिल में हो भारत"