Thursday, May 8, 2025

सोशल मीडिया के शोर में गुम होता देश प्रेम!

 सोशल मीडिया के शोर में गुम होता देशप्रेम"


आज जब पूरा भारत युद्ध के मुहाने पर खड़ा है, जब हमारे जवान सरहदों पर सीना ताने खड़े हैं, तब भी देश के भीतर एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस संकट की आहट से बेखबर है। क्यों? क्योंकि उनकी दुनिया सिर्फ इंस्टाग्राम की रील्स, फेसबुक की स्टोरीज़ और व्हाट्सएप की डीपी तक सीमित हो गई है।


सोशल मीडिया अब संवाद का माध्यम नहीं, एक दिखावे की मंडी बन चुका है। वहाँ न कोई संवेदना बची है, न ही देश के लिए कोई जिम्मेदारी। जब हमारे सैनिक रातों की नींद छोड़कर सीमा पर खड़े होते हैं, तब बहुत से लोग अपनी सुबह की तस्वीर में "Good Morning" लिखकर खुद को समाजसेवी समझ लेते हैं।


हम पूछना चाहते हैं — क्या सिर्फ अपनी तस्वीरें पोस्ट करना ही ज़िंदगी है? क्या देश की ज़मीनी हकीकत से आँखें मूंद लेना ही आधुनिकता है? अगर आपके पास एक स्मार्टफोन है, तो क्या आप उसका इस्तेमाल सिर्फ खुद को दिखाने में करेंगे, या कभी देश के लिए भी आवाज़ उठेगी आपकी उंगलियों से?


ये वक़्त है जागने का। सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल कीजिए। अपने स्टेटस में हमारे वीर जवानों के लिए कुछ शब्द लिखिए। उनकी बहादुरी, उनके त्याग और उनके संघर्ष को जगह दीजिए। हम सबका कर्तव्य है कि देश के इस कठिन समय में न केवल उनका हौसला बढ़ाएं, बल्कि खुद भी एक जागरूक नागरिक बनें।


देश चलाने के लिए सिर्फ सरकार और सैनिक नहीं होते, बल्कि हर वह नागरिक ज़िम्मेदार होता है जो देश की मिट्टी से जुड़ा हो। तो अपने इंस्टाग्राम से थोड़ा समय निकालिए, व्हाट्सएप पर सिर्फ फॉरवर्ड न कीजिए—कुछ असली, सच्चे भाव लिखिए। ताकि जब इतिहास लिखा जाए, तो उसमें यह भी लिखा जाए कि जब भारत संकट में था, तब उसकी जनता उसके साथ खड़ी थी—शब्दों में, भावों में और कर्मों में।


"सोशल मीडिया पर नहीं, दिल में हो भारत"

Wednesday, January 3, 2024

मन का थकान

काम के एक लंबे थकान के बाद घर लौटा हूं। इससे पहले सबकुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन पता नहीं खुदको अब बहुत गंभीर महसूस कर रहा हूं। इससे पहले मैं ऐसा बिल्कुल नहीं था। पागलों सा हंसता था, कुछ भी उल्टा सीधा बोलता था। किसी के सीधे बातों का उल्टा जवाब निकालने से तो बेहतर है कि उल्टा सीधा जैसा ही बोलना। सच बताऊं तो मैं एक निहायतन बेवकूफ और पागल था। यह लोग मुझे कहते भी थे। लोगों का कहना मुझे चोट तो पहुंचाता था लेकिन अब मुझे अच्छा लगता है क्योंकि उन पुरानी यादों में दुख तो भरपूर था लेकिन अब मैं समझता हूं कि दर्द किसी द्वारा दिए गए या पहुचाए गए पीड़ा के बीच सबसे ज्यादा सुख निहित होता है। आठ महीना नौकरी पर गहरे समंदर और सिलेटी आसमान से घिरे रहने के बाद घर आने की मानसिक थकान ने मुझे बहुत थका दिया था। पर अब मैं अपने घर में हूं और खुदको अपने माता पिता छोटे भाई और समूचे घरवालों और दो नन्हें फूल और कोमल पौधें से भतीजियो से घिरा हुआ हूं। फिरभी एक खालीपन से भी घिरा हुआ हूं जबकि मैं समझता हू की जब मेरे पास इतना कुछ है तो खाली महसूस करने की मुझे क्या जरूरत है? इतना कुछ होने के बावजूद मैं एकांत की तलाश करता हूं। मन तेज गति से दूर भागता रहता है। किताबों से मुझे बेतरतीब लगाव था, "है" वह भी छूटा छूटा लग रहा है। एक किताब लिखने की कहानी पिछले लगभग पांच सालों से अपने मन मस्तिष्क में लिए ढो रहा हूं। पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है जैसे मन का दरवाजा बंद हो चुका है। और इसके पीछे का कारण शायद उदेश्यहीन काल्पनिक जीवन जीना है। 

हम मानुष लोग सुख की तलाश में कितना तेज़ भागते है लेकिन जाने अंजाने में दुख से लदे मंज़िल नाम के शख्स के पीछे भागते रहते है। वक्त चालाकी और चुपके से ढलती रहती है और हमारे हिसाब से उम्र कब उम्रदराज हो जाती है हमे पता नहीं चलता।


Wednesday, May 19, 2021

फिज़ा हमेशा एकतरफ़ा दौड़ती है।

 फिज़ा हमेशा एकतरफ़ा दौड़ती है, और फ़िज़ा जब दिल की टहनियों को छूकर गुज़रती है तो वहाँ पर एक वीरान सी सूनापन छोड़ जाती है। ऐसे में उसकी भूली बिसरी यादें एकतरफ़ा इंतेज़ार की थपेड़ों में तब्दील कर देती है।

प्रिय, तन्हाई

 प्रिय,

    "तन्हाई"

पता नही क्यों? कभी कभी दिल टूटा - टूटा महसूस होता है। जीवन का पहिया, उदासी की उबड़ खाबड़ वीरान सी रस्ते में हिचकोले लेते हुए दिखाई देता है और मैं क़िस्मत की टूटी बाँध के किनारों पर ख़ुद को मौज़ूद पा रहा हूँ। रात की तन्हाई की घड़ी टिक-टिक करके सोने नही देती, आँखों से नींद उखड़ी हुई, अधज़ले राख सी तपती रहती है। दिन की उजालों में क़दम बेवज़ह भागते रहते हैं, जिसकी ख़बर न कानों को है और नही दिमाग़ को, बस कशक्ति दिल को ख़बर है, जिससे परछाईयाँ धीरे-धीरे साथ छोड़ रही है।

कितना प्यार करते हो मुझसे?

 कितना प्यार करते हो मुझसे? उसने कहा!


जितनी सिद्दत से ये जो अँगूठी तुम्हारी 

उंगलियों को, पहन रहे हैं! उससे ज़्यादा।

                    मैंने कहा!

दरअसल

 दरअसल, चीज़ें आसान नही होती उसे अपनी सोच और समझ से आसान बनानी पड़ती है

प्यार, मोहब्बत, रिश्ते-नाते ठीक उपग्रह के समान है, उस तक पहुँचने की सीढ़ी सिर्फ़ आपसी समझ है।

दिल टूट कर, बिखरने के बजाए। दिल राख हो चुका है।

 दिल टूट कर, बिखरने के बजाए।

दिल राख हो चुका है।

फिर भी तुम्हारी यादों की सुनी सुरंगों में,

भटकने को जी करता है,

बिखरने को जी चाहता है।

कोई तो आँधी आएगी, एक दिन,

बहकर पहुँचूँगा, तुम तक,

नई पुरानी बातों को लेकर।