फिज़ा हमेशा एकतरफ़ा दौड़ती है, और फ़िज़ा जब दिल की टहनियों को छूकर गुज़रती है तो वहाँ पर एक वीरान सी सूनापन छोड़ जाती है। ऐसे में उसकी भूली बिसरी यादें एकतरफ़ा इंतेज़ार की थपेड़ों में तब्दील कर देती है।
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