Wednesday, May 19, 2021

प्रिय, तन्हाई

 प्रिय,

    "तन्हाई"

पता नही क्यों? कभी कभी दिल टूटा - टूटा महसूस होता है। जीवन का पहिया, उदासी की उबड़ खाबड़ वीरान सी रस्ते में हिचकोले लेते हुए दिखाई देता है और मैं क़िस्मत की टूटी बाँध के किनारों पर ख़ुद को मौज़ूद पा रहा हूँ। रात की तन्हाई की घड़ी टिक-टिक करके सोने नही देती, आँखों से नींद उखड़ी हुई, अधज़ले राख सी तपती रहती है। दिन की उजालों में क़दम बेवज़ह भागते रहते हैं, जिसकी ख़बर न कानों को है और नही दिमाग़ को, बस कशक्ति दिल को ख़बर है, जिससे परछाईयाँ धीरे-धीरे साथ छोड़ रही है।

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