Wednesday, May 19, 2021

एक अंधेरा था, खुशियों के परे।

 एक अंधेरा था,

खुशियों के परे,

किसमत के गर्त के परतों से दबा नीचे,

जहाँ वो कैद था,

किसमत के सलाख़ों के पीछे,

जहाँ न सीढ़ी था, न चींटी,

और नाहीं, गोताखोर...

थीं तो बस, उस अँधेरे में,

मौज़ूद दीवारें और जिसपे कुछ दरारें थी!

लेक़िन उसने ख़ुद को न रोका न थामा,

वो इत्मिनान आत्मबल से चढ़ता गया।


अब किसमत उसके साथ थी,

और सलाखें उसके पीछे।


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