Wednesday, May 19, 2021

फिज़ा हमेशा एकतरफ़ा दौड़ती है।

 फिज़ा हमेशा एकतरफ़ा दौड़ती है, और फ़िज़ा जब दिल की टहनियों को छूकर गुज़रती है तो वहाँ पर एक वीरान सी सूनापन छोड़ जाती है। ऐसे में उसकी भूली बिसरी यादें एकतरफ़ा इंतेज़ार की थपेड़ों में तब्दील कर देती है।

प्रिय, तन्हाई

 प्रिय,

    "तन्हाई"

पता नही क्यों? कभी कभी दिल टूटा - टूटा महसूस होता है। जीवन का पहिया, उदासी की उबड़ खाबड़ वीरान सी रस्ते में हिचकोले लेते हुए दिखाई देता है और मैं क़िस्मत की टूटी बाँध के किनारों पर ख़ुद को मौज़ूद पा रहा हूँ। रात की तन्हाई की घड़ी टिक-टिक करके सोने नही देती, आँखों से नींद उखड़ी हुई, अधज़ले राख सी तपती रहती है। दिन की उजालों में क़दम बेवज़ह भागते रहते हैं, जिसकी ख़बर न कानों को है और नही दिमाग़ को, बस कशक्ति दिल को ख़बर है, जिससे परछाईयाँ धीरे-धीरे साथ छोड़ रही है।

कितना प्यार करते हो मुझसे?

 कितना प्यार करते हो मुझसे? उसने कहा!


जितनी सिद्दत से ये जो अँगूठी तुम्हारी 

उंगलियों को, पहन रहे हैं! उससे ज़्यादा।

                    मैंने कहा!

दरअसल

 दरअसल, चीज़ें आसान नही होती उसे अपनी सोच और समझ से आसान बनानी पड़ती है

प्यार, मोहब्बत, रिश्ते-नाते ठीक उपग्रह के समान है, उस तक पहुँचने की सीढ़ी सिर्फ़ आपसी समझ है।

दिल टूट कर, बिखरने के बजाए। दिल राख हो चुका है।

 दिल टूट कर, बिखरने के बजाए।

दिल राख हो चुका है।

फिर भी तुम्हारी यादों की सुनी सुरंगों में,

भटकने को जी करता है,

बिखरने को जी चाहता है।

कोई तो आँधी आएगी, एक दिन,

बहकर पहुँचूँगा, तुम तक,

नई पुरानी बातों को लेकर।

बातों की समझ ज़रूरी नही कि आपको हमेशा हो, यह तरलता के आधार पर अदृश्य विचार है, जो कि बदलते रहते है, हालात और परिवेश को देखते हुए।

 बातों की समझ ज़रूरी नही कि आपको हमेशा हो,

यह तरलता के आधार पर अदृश्य विचार है, जो कि बदलते रहते है, हालात और परिवेश को देखते हुए।

जब हम क़िताब पढ़ रहे होते हैं! तो अपने अंदर विश्लेषक पूर्ण विचारों की क्रान्ति ला रहे होते हैं।

 जब हम क़िताब पढ़ रहे होते हैं!

तो अपने अंदर विश्लेषक पूर्ण विचारों की क्रान्ति ला रहे होते हैं।

एक अंधेरा था, खुशियों के परे।

 एक अंधेरा था,

खुशियों के परे,

किसमत के गर्त के परतों से दबा नीचे,

जहाँ वो कैद था,

किसमत के सलाख़ों के पीछे,

जहाँ न सीढ़ी था, न चींटी,

और नाहीं, गोताखोर...

थीं तो बस, उस अँधेरे में,

मौज़ूद दीवारें और जिसपे कुछ दरारें थी!

लेक़िन उसने ख़ुद को न रोका न थामा,

वो इत्मिनान आत्मबल से चढ़ता गया।


अब किसमत उसके साथ थी,

और सलाखें उसके पीछे।


मैं नासमझ, समझ नही पाया, तेरी उस असहज़ सिमटन को, मेरी बाहों में सिमटने की अदा।

 मैं नासमझ, समझ नही पाया,

तेरी उस असहज़ सिमटन को,

मेरी बाहों में सिमटने की अदा।

बेवज़ह, कितना प्यार था,

तुम्हारे लिए मेरे मन मे,

जो ये कम था, जो आज 

तुमने अपनी तस्वीर 

भेजी है, उसके साथ