Wednesday, September 13, 2017

झूठी भेदभाव


।।एक बार ज़रूर पढ़े।।
मेरे साथियों आज मैं आपसे अपने जीवन मे बीती कुछ अनसुलझी तस्वीरें साझा करना चाहता हूँ, जिससे मैं सुलझ सकू और आपको भी अपनी अनसुलझी, सुलझी तस्वीरों के बीच मौजूद सामाजिक अस्पृश्यता के रंगों से रू-ब-रू करवा सकू, जहाँ एक तरफ अस्पृश्यता शब्द को वैधानिक रूप से हमारे समाज से उखाड़ फेक दिया गया है, वही दूसरी तरफ अस्पृश्यता शब्द वैधानिक पन्नों में ही सुशोभित है, और ये शब्द आज भी हमारे समाज़ में गहरी स्थिर पानी मे बैठा मैला की तरह साफ झलकता है कि कैसे हमारा समाज़ आज भी भेद-भाव की पुरानी जंज़ीरों में जकड़ा हुआ है।
                                     ये तस्वीरें जो मेरे ज़हन में पिछले कई सालों से समाज़ में बैठे उत्कंठा के लगे वृक्ष भेद-भाव से जकड़ी डालियाँ मेरे मन मे हिलोरे मार रही है। ये तस्वीरें 2012 की है जब मैं बिहार के रोहतास ज़िले के पुरातन प्राचीन किले रोहतास कीले के एक मामूली भ्रमण पर था, वहाँ पर विराजमान शिव जी का एक मंदिर है जिसे लोग चौरासन कहते है, जिसमे चौरासी सीढ़ियों को पार कर शिव जी का दर्शनाभिषेक किया जाता है, फिर वही से कुछ दूर आगे चलकर मुसलमानों का एक दरगाह है, जो काफी आस्था से ये दोनों लबरेज़ है और ये बख़ूबी हिन्दू मसलमानों का एकता का प्रतीक भी है।
                                      दोस्तो मैं इतिहाष के ज़्यादा पन्नो को न पलटते हुए अपनी अनसुलझी स्मृति को आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।
                                     ये जो आप तस्वीर देख रहे है, मैं इसी चौरासन मंदिर के सीढ़ियों पर बैठकर सुबह की मीठी और उगती सूरज की किरणें और अद्भुत प्रकृति के बिखरते छटा को मनोर्मम हवाओं के साथ सकारात्मक विचारों में बह रहा था, तभी मेरी निगाहें एक मुस्लिम दंपत्ति पर पड़ी और उनके बच्चे जो सायद पांच छः की संख्या रही होगी, उनके बच्चे यत्र-तत्र चहलकदमी कर रहे थे, उनकी मासूमियत और नटखटपना ने और भी उस जगह को शुशोभित कर दिया था। सायद वो दम्पत्ति, कुछ आगे चलकर जो दरगाह उपस्थित था वही से आ रहे थे। जो बच्चे यत्र-तत्र चहलक़दमी कर रहे थे वो चौरासन यानी शिव जी के मंदिर के चौखट के कभी इसपार तो कभी उसपार हो रहे थे। तभी उन बच्चों की माँ ने अपने बच्चों को आवाज़ दिया, तुमलोग अंदर मत जाओ। और वहाँ पर विराजमान शिवलिंग को मत स्पर्श मत करना। मैं  एक माँ की इस ममतामयी और निश्छल शब्द सुनकर मेरी आँखें नम हो गई, ये सारी तस्वीरों को अपने उम्र के हिसाब से तज़ुर्बे के दहलीज़ में ये सारी घटनाक्रम समाहित हो रही थी। मैंने तुरंत अपनी अंतरात्मा, अपने माँ बाप द्वारा दिये गये संस्कार से पूछा कि उस दंपत्ति को पता है कि वह जगह उनके छू देने से अपवित्र हो जायेगी, जबकि ऐसा हज़ारों मिलों तक अस्पृश्यता की भावना है ही नही, उस दम्पत्ति को हर चीज़ पता है फिर भी हमारे समाज़ में रह रहे लोगों के आँखों के ऊपर काली स्याही की भांति पट्टी लगी हुई है और आज जिसे हम आधुनिकता के दौर में अस्पृश्यता की भावना को नकारते है जबकि ये शब्द केवल वैधानिक रूप से कागज़ के पन्नों पर ही एक मात्र अदृश्य भावार्थ बनकर रह गया है।
                                    मैं पूछना चाहता हूँ, समाज़ के उस तबके से जो अपने आपको शिक्षित कहता है।मैं पूछना चाहता हूँ, बवुद्धिजीवी वर्ग से। मैं पूछना चना चाहता हूँ, सामाज निर्माताओं से कि कब हमारे समाज़ में रह रहे कुछ लोगो द्वारा जो अस्पृश्यता की पुरानी जंग लगी भावना की जंज़ीरों से जकड़ा हुआ है और समाज मे कुरीतियां फैलाने से बाज़ नही आ रहे है।
                                   जबकि हमारे देश को आज़ाद हुए और संविधान लागू हुए लगभग सत्तर साल की इस लम्बी अवधि के अंतराल में भी कुछ खासा बदलाव नही आया है।
   छुआछूत, भेदभाव, अंधविश्वास की बेड़ियों में हमारा समाज़ जकड़ा हुआ है। ऐसे में मैं उनलोगो से आग्रह करना चाहता हूँ जो पढ़े लिखे साक्षर के साथ साथ अपने आपको शिक्षित कहते है, वो समाज़ के बीच पूर्णतः सक्रीय हो और सभी को शिक्षित करे।

                          

1 comment:

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