Wednesday, September 13, 2017

तनहाइयाँ (कविता)

ज़िन्दगी उदास है,
न जाने ये कैसी प्यास है।
अधूरा मैं हूँ, पूरी तुम हो,
मैं अंजाना सा उदासियों का महफ़िल हूँ।
तुम ज़माने की महफ़िल हो,
मैं टूटा सा तुम्हारी यादों का बांध हूँ।
तुम इस टूटे से बाँध में नाव सी सफ़र हो।
मैं खामोश सा बेआवाज़ हूँ,
तुम ज़माने की आवाज़ हो।
मैं तुमसे मज़े में दर्द लेता हूँ,
तुम मुझसे दर्द में मज़े लेती हो।
मैं तेरी यादों की तन्हाइयो का दीवार हूँ,
तुम किसी और की बाहों की दीवार हो।
                 
                         

No comments:

Post a Comment