Wednesday, September 13, 2017

यादों की बारात हो तुम (कविता)

यादों की बारात हो तुम,
दुल्हन सी सजी कोई बात हो तुम,
शामों सुबह की आज़ान हो तुम,
गर्मी की तपन की मीठी बरसात हो तुम,
ठंढे दिनों की शुनहरी धूप हो तुम,
पतझड़ मौसम की दिलकशी याद हो तुम,
नदियों झीलों यादों की लहरों पे मौजूद-
तन्हाइयो की एक किताब हो तुम,
कोरे कागज पर बना सादगी का निशब्द हो तुम,
सूरज से चुराकर, टिमटिमाती तारो की बारात ही तुम,
दुल्हन सी सजी कोई बात हो तुम,
यादों की बारात हो तुम।।
                 
                         

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