Wednesday, September 13, 2017

एहसास

पता नही क्यों, अंजान जानते हुए भी हर बार तुम्हारी यादों से मिलने पहुंच जाता हूँ। शायद दिल के हाथों मज़बूर होके आज से ठीक कुछ दिनों पहले अपनी तन्हाइयों की तंग गलियों के बीच तुम्हें देखा था महशूस किया था। यक़ीन नही होता इतने वक़्त में तुम मेरे इतनी क़रीब आ गई हो।।.  
  जब तुम्हे मैं सोचता हूँ, तो मानो जैसे मेरी धड़कने थम सी जाती है और फिर शुरू होता है तुम्हारी यादों का कारवां जिसमे तुम होती हो और तुम्हारी यादों की अनसुलझी और धुंधली सी तुम्हारी तस्वीरें, जिसे मैं छूूना तो चाहता हूँ पर डर लगता है कि तुम मेरी यादों की धुंधली तस्वीरों से कही मिट न जाओ, तेरी यादों के बगैर मेरी सांसे अधूरी है,मैं युही तुम्हारी यादों को समेटना चाहता हूँ।

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