Thursday, October 15, 2020

तुम्हें किताबो में पढूंगा।

तुम्हे किताबों में पढूंगा।


जब किताबों को पढ़ता हूँ,

तो किताबें मुझे पढ़ने लगती हैं,

ठीक उसी तरह जैसे हर दिन पहली बार पढ़ रहा हूँ,

जैसे, अपनी प्रेमिका की दी हुई,

वो प्रेम पत्र की तरह,

कुछ पन्ने लिख कर आगे बढ़ता हूँ,

शब्द, बिल्कुल तुम्हारी तरह मुस्कुरा देते है,

फिर, मैं वापस लौट आता हूँ,

और शब्दों की रंग से रंगने लगता हूँ,

और क़िस्से कहानियों में तुम्हें पिरोने लगता हूँ,

"फ़िर"

उलझी जीवन की परतें,

खुलने और सुलझने लगती है,

ठीक प्याज़ की परतों की तरह।

चाय, चुप्पी और बारिश।

 चाय, बारिश, चुप्पी


क्या करूँ, क्या ना करू

दिल हैरान परेशां रहता है।

चाय बारिश चुप्पी

हाथों में किताब

और होंठो का वो तुम्हारा तिल

सब इस बारिश के हल्की-

फुहारों से भीग रहे है

पहली बारिश की तरह, "आज"

दूसरी बारिश में धीरे धीरे धूल रही है,

चाय, चुप्पी, किताबों में लिखे शब्द,

सिवाय, तुम्हारे होंठ के तील के

तिल, जो आँखों मे घनी अंधेरों की आबादी है,

बस्ती, गली, मोहल्ले के बावुजूद पर्वत सा खालीपन है।

मैं तुमसे ऐसे प्यार करता हूँ।

मैं तुमसे ऐसे प्यार नही करता,

जैसे तुम गुलाब हो।

पुखराज या गुलनार के जैसा नही,

मैं तुमसे प्यार करता हूँ।


जैसे कोई अंधेरी चीज़ हो,

राज की तरह, आत्मा और परछाई के बीच।"

मैं तुम्हे ऐसे प्यार करता हूँ।

जैसे कोई पौधा जो कभी नही खिलता,

पर अपने अंदर ही, छिपाकर,

अपने अंदर फूलों की रौशनी लिए।"

शुक्र है तुम्हारे प्यार का,

जो मेरे शरीर मे रहती है..."

एक ऐसी शौन्धी खुशबू,

जो ज़मीन से निकलती है।

मैं तुम्हें कैसे, कब या कहा से,

बिना जाने प्यार करता हूँ।

मैं तुम्हे सीधा प्यार करता हूँ,

जटिलताओं या गर्व के बिना,

जिसमे ना तुम हो, ना मैं,

इतने पास की मेरे

दिल के चौखट पर सिर्फ तुम्हारी आहट हो।"

इतने पास कि मेरे सपने देखने से

तुम्हारी आँखें बंद होती हो।

तन्हाई की चादर, रात ओढ़े

 तन्हाई की चादर, रात ओढ़े,

शायद खुद की तलाश में,

तुम्हें धीरे धीरे खो रहा हूँ।


तुम मुझे अक्सर मिलती हो,

और मैं जानबूझ कर,

तुम्हें खो देता हूँ। 


हर बार-हर रात में

मैं जानता हूँ, 

तुम एक मेरे लिए बनी हो,

तुम्हें बेहतर जीवन देने के लिए,

मैं खुद को बेहतर, तलाश रहा हूँ।


क्या तुम जानती हो,

हर बार - हर रात, 

ज़ार ज़ार आँखें रोकर

नाखूनों से बिस्तर को खुरचकर,

की मैं तुम्हें, महसूस करता हूँ,

मैं तुम्हें चखता हूँ,

मैं तुम्हें सोचता हूँ,

मैं तुम्हे छूता हूँ, 

क्योंकि,

सच तो ये है, कि

ज़रा ज़रा खुद को खो रहा हूँ।


तालाब और मछलियों के रिश्तों को इंसानों को समझने में थोड़ा वक्त लगेगा।

 भीड़ में या अगल बगल लोगों में बैठना, शायद मुझे अच्छा नही लगता क्योंकि अधिकतम लोग विकारों से ग्रस्त है। और हाँ, मैं भी। मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मेलो के बीचोबीच बैठा हूँ और दिलो दिमाग पर भीड़ महसूस करता हूँ, एक भारीपन, फिर कभी तालाब के पास बैठ जाता हूँ, तो चिड़ियों की कलरव और तालाब में गुलूप गुलूप मछलियों की आवाज़ें। शायद, हम इंसानों को, तालाब और मछली के रिश्तों जैसा होने में अभी वक़्त लगेगा।

तुम दो या तीन होती, फिर भी मैं तुम्हें ही चुनता।

 यह मेरे लिए कहना मुश्किल है, कि 

तुम मेरे लिए कितनी अहम हो, 

शायद निशब्दता शब्द भी मेरे लिए कम पड़ जाए। 

क्योंकि तुमने मुझे जिस तरह जीना सिखाया है, 

वह एक ख़ुशनुमा तरीका ना होकर, 

मेरे लिए दुनिया मे सबसे,

अद्भुत और अलग एहसास है। 

मैं अपने आत्मा की गहराई से कह सकता हूँ, कि 

यदि तुम दो या तीन होती फ़िर भी मैं तुम्हें ही चुनता। 

मैं तो चाहता हूँ कि आज का दिन हम दोनों के फासलों के बीच गवाह बनी ये रात, 

यही और हमेशा के लिए ठहर जाएं,

लेकिन आज का दिन रुकेगा नही।

लेकिन हम दोनों आज भी है,कल भी 

और परसो भी क्योकि, 

आज - कल परसो आज ही बना रहेगा। 

क्योंकि तुम सिर्फ आज नही हो बल्कि,

हर सुबह दोपहर और शाम तीनो पहर, तुम ही तुम हो।