मैं तुमसे ऐसे प्यार नही करता,
जैसे तुम गुलाब हो।
पुखराज या गुलनार के जैसा नही,
मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
जैसे कोई अंधेरी चीज़ हो,
राज की तरह, आत्मा और परछाई के बीच।"
मैं तुम्हे ऐसे प्यार करता हूँ।
जैसे कोई पौधा जो कभी नही खिलता,
पर अपने अंदर ही, छिपाकर,
अपने अंदर फूलों की रौशनी लिए।"
शुक्र है तुम्हारे प्यार का,
जो मेरे शरीर मे रहती है..."
एक ऐसी शौन्धी खुशबू,
जो ज़मीन से निकलती है।
मैं तुम्हें कैसे, कब या कहा से,
बिना जाने प्यार करता हूँ।
मैं तुम्हे सीधा प्यार करता हूँ,
जटिलताओं या गर्व के बिना,
जिसमे ना तुम हो, ना मैं,
इतने पास की मेरे
दिल के चौखट पर सिर्फ तुम्हारी आहट हो।"
इतने पास कि मेरे सपने देखने से
तुम्हारी आँखें बंद होती हो।
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