तन्हाई की चादर, रात ओढ़े,
शायद खुद की तलाश में,
तुम्हें धीरे धीरे खो रहा हूँ।
तुम मुझे अक्सर मिलती हो,
और मैं जानबूझ कर,
तुम्हें खो देता हूँ।
हर बार-हर रात में
मैं जानता हूँ,
तुम एक मेरे लिए बनी हो,
तुम्हें बेहतर जीवन देने के लिए,
मैं खुद को बेहतर, तलाश रहा हूँ।
क्या तुम जानती हो,
हर बार - हर रात,
ज़ार ज़ार आँखें रोकर
नाखूनों से बिस्तर को खुरचकर,
की मैं तुम्हें, महसूस करता हूँ,
मैं तुम्हें चखता हूँ,
मैं तुम्हें सोचता हूँ,
मैं तुम्हे छूता हूँ,
क्योंकि,
सच तो ये है, कि
ज़रा ज़रा खुद को खो रहा हूँ।
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