चाय, बारिश, चुप्पी
क्या करूँ, क्या ना करू
दिल हैरान परेशां रहता है।
चाय बारिश चुप्पी
हाथों में किताब
और होंठो का वो तुम्हारा तिल
सब इस बारिश के हल्की-
फुहारों से भीग रहे है
पहली बारिश की तरह, "आज"
दूसरी बारिश में धीरे धीरे धूल रही है,
चाय, चुप्पी, किताबों में लिखे शब्द,
सिवाय, तुम्हारे होंठ के तील के
तिल, जो आँखों मे घनी अंधेरों की आबादी है,
बस्ती, गली, मोहल्ले के बावुजूद पर्वत सा खालीपन है।
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